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एक प्रेरक कहानी" नेक नियत "सबके लिए और बच्चों के लिये - motivation hindi story for children

एक प्रेरक कहानी" नेक नियत "सबके लिए और बच्चों के लिये - motivation hindi story for children

एक समय एक धनी सेठ ने एक बहुत ही भव्य विशाल और सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया  और इस मंदिर में भगवान की पूजा करने के लिए एक पुजारी को भी रखा गया था | धनी सेठ ने मंदिर के खर्चों की व्यवस्था के लिए बहुत सारी खेती की जमीन बाग-बगीचे इत्यादि संपत्ति मंदिर की संपत्ति के अंतर्गत भी दे दिए थे । और इस मंदिर में ऐसा व्यवस्थित प्रबंध किया कि मंदिर में आने वाले गरीब भूखे लोग- दीन-दुखी लोग और साधु संत सन्यासी जो भी आए ,वह कुछ दिनों तक ठहर सके और उन्हें भगवान का प्रसाद व भोजन मिल जाया करें । अब कुछ समय पश्चात इस धनी सेठ को इस मंदिर की सारी व्यवस्था प्रबंध को सुचारु व व्यवस्थित रुप से चलाने के लिए एक अच्छे इंसान की आवश्यकता हुई । और इस विषय में उसने गांव के लोगों के बीच में बात की तो बहुत से गांव के लोग वहां आए ,क्योंकि गांव के लोग यह जानते थे । कि अगर इस मंदिर में उन्हें काम मिल जाएगा तो उन्हें अच्छी खासी तनख्वा भी मिलेगी और आरामदायक काम होने से काम भी अच्छा है । लेकिन इस धनी सेठ ने गांव के लोगों में से किसी को भी मंदिर के प्रबंध के कार्यो के लिए उपयुक्त नहीं समझा । अमीर सेठ सब से यही बोलता था कि मुझे एक सच्चा सेवाभावी नेक नियत वाला अच्छा इंसान चाहिए । जिसे मैं स्वयं ही ढूंढ लूंगा ।बहुत से लोगों ने मंदिर के प्रबंध की नौकरी व काम के लिए प्रयास किया , परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली बहुत से गांव के लोग अब इस प्रकार के व्यवहार से इस अमीर सेठ को बुरा भला कहने लगे और गालियां  देते और मूर्ख भी बताने लगे लेकिन यह अमीर सेठ अपनी इन आलोचनाओं की परवाह नहीं करता । और इन सब की बातों को नजरअंदाज कर देता। और रोज जब मंदिर के पट खुलते तो यह अमीर सेठ एक मकान की छत के ऊपर से सभी मंदिर में आने वाले भक्तों और दर्शनार्थियों को देखा करता था । एक दिन सुबह का समय था। एक व्यक्ति मंदिर में दर्शन करने आया, जो शक्ल से साधारण और जिसके तन के कपड़े मैले-कुचैले थे, जो हाव भाव से कम पढ़ा लिखा लगता था । जब वह मंदिर से पूजा प्रार्थना करके जाने के लिए आगे बढ़ा, तो उस अमीर सेठ ने उसे अपने पास आने को कहा वह व्यक्ति उस अमीर सेठ के पास गया तो उस सेठ ने उससे कहा - क्या आप इस मंदिर की प्रबंध व व्यवस्था को संभालने का कार्य करेंगे ।

वह व्यक्ति अचानक इस प्रकार की इतनी बड़ी जिम्मेदारी इस प्रकार मिल जाने से आश्चर्य और सोच में पड़ गया
इस पर इस व्यक्ति ने सेठ से कहा -आप मुझे यह कार्य देना चाहते हैं परंतु मैं बहुत पढ़ा लिखा विद्वान नहीं हूं अतः मैं इस इतने बड़े मंदिर का प्रबंध कार्य कैसे कर पाऊंगा ।
धनी सेठ ने कहा- पढ़े लिखे और भी मिल जाएंगे परंतु मैं एक नेक और भले इंसान को इस मंदिर का  प्रबंधक बनाना चाहता हूं ।
इस पर यह व्यक्ति बोला - इस मंदिर में बहुत से लोग आते जाते हैं आपने मुझ में ऐसा क्या देखा और आप मुझे ही क्यों इस कार्य के लिए उचित मानते हैं
सेठ बोला- भाई मैं जानता हूं तुम एक अच्छे और नेक नियत वाले इंसान हो मंदिर के निर्माण के समय से ही एक पत्थर का टुकड़ा यहां गड़ा हुआ रह गया था ! इसका एक भाग बाहर निकला हुआ था !  मैं बहुत समय से यह देख रहा हूं कि लोग इस पत्थर के टुकड़े की नोक से ठोकर खा रहे हैं ! और कभी-कभी तो लोग पत्थर के टुकड़े से ठोकर खाकर गिर जाते हैं । और उठ कर चले जाते हैं । परंतु तुम्हें इस पत्थर से ना ठोकर लगी ,ना चोट , और फिर भी तुमने इस पत्थर को उखाड़ने का कार्य किया है। मैंने देखा तुमने खुद ही इस मजदूर से औजार  लेकर जमीन को खोदकर इस पत्थर के टुकड़े को निकाल डाला । और स्थान पर गड्ढा रह जाने से किसी को असुविधा ना हो इसलिए तुमने फिर वापस उस भूमि को बराबर समतल कर दिया ।
इस पर उस व्यक्ति ने कहा - इसमें बड़ी बात क्या है मानवता हमें सबका भला करना सिखाती है  । और जब किसी रास्ते में नुकीले कांटे और ठोकर लगने वाले पत्थर हो तो जनहित के लिए उन्हें हटाना सब का कर्तव्य होता है ।
इस पर धनी सेठ ने कहा - अपने कर्तव्य का पालन करने वाले लोग ही नेक नीयत के लोग होते हैं और जब किसी कार्य को नेक नीयत के साथ किया जाए तो हम बहुत लोगों का भला कर सकते हैं



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