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लोगों के फोन पर सोशल मीडिया के द्वारा दुनिया भर में चुनाव को प्रभावित किया गया क्या यह आप जानते हैं

 आपके पास भी स्मार्टफोन है तो  इस जानकारी को जरूर पढ़ें


सावधान आपके फोन पर आपके द्वारा की जा रही सभी गतिविधियों पर किसी की नजर हो सकती है  

आजकल स्मार्टफोन के बढ़ते चलन के कारण राजनीतिक पार्टियां आपकी सोच पर नियंत्रण बनाने का प्रयास करती हैं- आपको शायद मालूम होगा कुछ समय पहले फेसबुक पर आरोप लगा था कि उसने एक कंपनी कैंब्रिज  एनालिटिका को अपना यूजर डाटा बेचा है , इस तथ्य से मालूम होता है कि राजनीतिक पार्टियां लोगों की सोच में सेंध लगाती है-

सोशल मीडिया के द्वारा लोगों के मन कैसे बदले जाते हैं- और कैसे पढ़े जाते हैं -सोशल मीडिया स्ट्रेटजी की सुविधा देने वाली कंपनियों की मदद से राजनीतिक दल पहले किसी खास इलाके में रहने वाले लोगों की डाटा माइनिंग की मदद से उनकी रुचि और रुझान का पता कर लेते हैं - फिर किसी व्यक्ति या इलाके का साइकोमेट्रिक मॉडल या वर्चुअल इमेज तैयार किया जाता है अब साइबर ट्रोप्स बोर्ड सोशल मीडिया टीम के सदस्य टारगेट-एड ,चैट एप्स की मदद से इस खास इलाके में या किसी खास व्यक्ति के सोशल मीडिया अकाउंट को लेकर उसी आधार पर खास प्रकार के संदेश दिखाने लगते हैं, विशेष हैशटैग Trand करवाए जाते हैं ! इसको एक उदाहरण के द्वारा समझते हैं अमेरिकी चुनाव में अगर किसी खास क्षेत्र में लोगों के बीच हिलेरी क्लिंटन को लेकर झुकाव था तो वहां हिलेरी के खिलाफ तरह तरह के मैसेज मीम्स जीआईएफ ट्रेंड कराए जाते थे- क्षेत्र के खिलाफ कभी भी हिलेरी ने कोई बयान दिया हो तो उसे बार-बार उनकी मोबाइल स्क्रीन पर दिखाया जाता था ,फर्जी मैसेज भी चलाए जाते थे | रूस की ओर से करीब 80 लोगों की एक टीम अमेरिका में रहकर ऐसे अभियान चला रही थी- इसी कड़ी में कैंब्रिज एनालिटिका का नाम भी जुड़ गया था- चुनाव प्रचार के इस तरीके के इस्तेमाल का खतरा आज पूरी दुनिया में महसूस किया जा रहा है -भारत सहित कई देशों में इस पर कोई कानून अब तक प्रभावी रूप से नहीं बना है कई राजनीतिक पार्टियों को इसकी जानकारी तक नहीं -ऐसे में जब तक विपक्षी पार्टियां बचाव का तरीका ढूंढे तब तक उस क्षेत्र में अधिकतर लोगों का मन उनके खिलाफ हो चुका होता है

 लोगों की  सोशल मीडिया डाटा माइनिंग कैसे होती है


 एक शोध के अनुसार अभी करीब 36 प्रतिशत भारतीयों के पास स्मार्टफोन है- इनसे कॉल या मैसेज भेजने वाले मोबाइल टावर उनका डिजिटल ट्रेल या विशेष नक्शा तैयार करते हैं -कॉल डिटेल रिकॉर्ड का मेटा डाटा भी तैयार किया जाता है -किसी खास घटना के दौरान इस डेटा के एनालिसिस से उस क्षेत्र में लोगों की प्रतिक्रिया या उनके व्यवहार से जुड़ी कई जानकारियां मिलती है -ऐसा इसलिए भी आसान है - क्योंकि भारत में अधिकांश मोबाइल टावर एक समूह के अधीन हैं !वाणिज्यिक या चुनाव संबंधी विश्लेषण के लिए डाटा माइनिंग का व्यापक मौका मौजूद है! सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है ! जहां पारंपरिक मीडिया की तुलना में अधिक तेजी से खबरें पहुंचाई जा रही है ! किसी नेता को अगर कोई खबर दूसरों से शेयर करनी हो तो वह पहले सोशल मीडिया पर तुरंत सूचना देता है !यह एक ऐसा माध्यम है जहां सूचना सबसे तेजी से पहुंचाई जा सकती है मोबाइल स्क्रीन पर एक टच  के द्वारा आप अपनी सूचना अपनी बात लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचा सकते हैं !

 व्हाट्सएप एंड टू एंड इंक्रिप्शन की गारंटी देता है !इसका अर्थ है कि ना तो कंपनी में कोई और ना तीसरा मैसेज या वीडियो देख सुन नहीं सकता हालांकि, व्हाट्सएप पर मैसेज या कॉल और वीडियो की अवधि कॉल रिसीव करने या रिसीव करने वाले की जानकारी ,ऑपरेटिंग सिस्टम, आईपी एड्रेस और ब्राउज़र डाटा इकट्ठा करता है ,अगर कोई पॉपुलर वीडियो शेयर किया जाए तो ,व्हाट्सएप अपने सर्वर की क्षमता बढ़ाने के लिए इसे आर्काइव के तौर पर रखता है ,आवश्यकता होने पर इससे मेटा-डेटा से वर्चुअल इमेज तैयार की जा सकती है !
सोशल मीडिया से चुनाव लाभ के ट्रेंड पर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया गया जिससे यह साबित होता है कि लोकतंत्र के लिए यह कितना घातक साबित हो सकता है !

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने 2 दर्जन से ज्यादा देशों में सामाजिक राजनीतिक दुष्प्रचार के लिए साइबर दस्ते के प्रयोग पर एक विशेष अनुसंधान किया है ! जिसके मुताबिक ऐसे दोस्तों की सघनता के मामले में भारत दूसरी श्रेणी के खतरनाक देशों में आता है ! एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साइबर गिरोह की सक्रियता का पहला उदाहरण आम चुनाव 2014 से पहले 2013 में भी देखने को मिला था ! यह शोध कंमप्यूटेशनल प्रोपेगेंडा रिसर्च प्रोजेक्ट के अंतर्गत ऑक्सफोर्ड के संबंध था ! ब्रेड शो और फिलिप एंड वर्ल्ड की शोध रिपोर्ट का नाम है !ट्रूप्स ट्रोल्स एंड ट्रबलमेकर्स ए ग्लोबल इन्वेंटरी ऑफ ऑर्गेनाइज्ड सोशल मीडिया मैनिपुलेशन साइबर ट्रूप्स क को परिभाषित ऐसे सरकारी या राजनीतिक दल की टीम के रूप में किया गया है ! जिसका काम सोशल मीडिया पर जन धारणाओं के साथ खिलवाड़ करना होता है  ! ऐसे संगठन जनता के पैसे से बनाए जाते हैं ! रिपोर्ट में कुल 28 देशों के ऐसे संगठनों की परस्पर तुलना की गई है ! सोशल मीडिया को प्रबंधित करने के वैश्विक प्रयासों पर यह अब तक का ऐसा पहला अध्ययन है ! मौजूदा शोध के अनुसार सोशल मीडिया का प्रोपेगेंडा  राज्य द्वारा इस्तेमाल एक वैश्विक परिघटना है !

कैंब्रिज एनालिटिका के द्वारा डाटा के विवादास्पद इस्तेमाल की बात पहली बार उस वक्त चर्चा में आई- जब व्हिसल ब्लोवर वाईले ने खुलासा किया कि यूके की इस कंपनी ने 8 प्वाइंट 7 करोड़ फेसबुक यूजर्स के डाटा गैरकानूनी ढंग से हासिल कर लिए हैं ,इन चुराए गए डाटा का का उपयोग 2016 में अमेरिकी चुनाव और ब्रिटेन में ब्रेक्जिट को लेकर हुए जनमत संग्रह में लोगों की राय को अपने लाभ के लिए प्रभावित करने के लिए किया गया था , हाल ही में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय से कैंब्रिज एनालिटिका और  ग्लोबल साइंस रिसर्च के संदर्भ में मिली रिपोर्ट के आधार पर एक प्रारंभिक जांच दायर की है , इन पर भारतीय फेसबुक युजऱो के डाटा के दुरुपयोग करने के आरोप हैं -अप्रैल 2018 में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने भी यह सार्वजनिक तौर पर स्वयं स्वीकार किया था - कि दुनिया भर के 2.2 अरब फेसबुक को यह मानता चलना चाहिए कि उनका डाटा सुरक्षित नहीं है । और ऐसा एक बार नहीं हुआ है, भारत को डाटा सुरक्षा तंत्र की जरूरत है सा लगने लगा है ,

डिजिटल मीडिया पर प्रचार के लिए आजकल व्यवस्थित वार रूम बनने शुरू हो गए हैं , चाहे विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव देश की महत्वपूर्ण पार्टियां डिजिटल मीडिया को एक बड़े हथियार के रूप में काम लेती है , इसके लिए बड़े बड़े पैमाने पर तैयारियां होती है ,मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बड़े-बड़े व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पेज बनाए जाते हैं ,चुनाव के लिए प्रदेश स्तर पर सोशल मीडिया स्पेशलिस्ट की टीमों का गठन का होता है, एक सोशल मीडिया रणनीतिकार का मानना है -कि ग्रामीण इलाकों में सोशल मीडिया के यूजर कम भले ही हो लेकिन यहां के यूजर सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताने लगे हैं ! राजनीतिक पार्टियों के लिए इससे दूरदराज के इलाकों में पहुंचना आसान हो गया है !


 द न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसे विशेष तौर पर अपने संपादकीय में लिखा था । कि सोशल मीडिया भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है ,सोशल मीडिया पर वायरल सूचनाएं अब तक चुनाव आचार संहिता के दायरे से बाहर है, क्योंकि अब इसका संगठित इस्तेमाल होने लगा है- कई सवालों के जवाब जरूरी हो गये हैं नीति निर्माता इस पर माथापच्ची कर रहे हैं ,तो हाल में सीबीआई ने फेसबुक से भारतीयों का निजी डेटा हासिल करने के मामले में कैंब्रिज एनालिटिका वह ग्लोबल साइंस रिसर्च की जांच शुरू की है ,सोशल मीडिया के उपयोग से कुछ सवाल भी उत्पन्न हुए हैं जैसे कि सोशल मीडिया पर चुनाव सामग्री के निगरानी कैसे की जाए ,दूसरी बात आचार संहिता के दायरे में से किस प्रकार से दया जाए ,तीसरा यह कि ऐसे प्रचार के लिए प्रत्याशी को कैसे जिम्मेदार बनाया जाए, चौथा यह कि इस पर होने वाला खर्च प्रत्याशी के खर्च में कैसे जुड़े और पांच वा ये की मीडिया माध्यम पर प्रचार का सबको समान अवसर कैसे मिले -आज लगभग भारत में सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या फेसबुक के  27 करोड एक्टिव यूजर्स
व्हाट्सएप यूज़ करने वाले यूजर्स की संख्या 20 करोड़ और ट्विटर यूज करने वाले यूजर्स की संख्या 1. 5 करोड़ के लगभग है !

तो हम सभी लोगों को यह जानना चाहिए ,की हम सभी को सोशल मीडिया का उपयोग सीमित मात्रा में करना चाहिए ,और सोशल मीडिया पर बताई जाने वाली सभी जानकारी पर आंखें बंद करके विश्वास नहीं करना , चाहिए क्योंकि आप जो भी अपने फोन पर संदेश लिखते हैं !प्राप्त करते हैं ! पसंद करते हैं 'ना पसंद करते हैं !इन सब पर निगरानी होती ही है -चाहे वैध तरीके से हो या अवैध तरीके से- क्योंकि अब जरा सोच कर देखिए- कि अगर किसी भी व्यक्ति के दिमाग में उसकी सोच में क्या चल रहा है -अगर आप यह जान जाएंगे तो उस व्यक्ति को आप प्रभावित कर सकते हैं नियंत्रित कर सकते हैं तो सोशल मीडिया का उपयोग समझकर कीजिएगा ।

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