सावधान अगर आप भी मिनरल वाटर पीते हैं तो पहले यह जान लीजिए कि यह आपके स्वास्थ्य के लिए कैसे हानिकारक हो सकता है
यदि आपको लगता है कि बोतलबंद
पानी स्वास्थ्य के लिए अच्छा होगा
तो यह धोखा हो सकता है। ऐसा
इसलिए क्योंकि ब्रेड में जिस
पोटेशियम ब्रोमेट के इस्तेमाल पर
हाल में रोक लगाई गई है,

उसी
रसायनिक तत्व को बोतलबंद पानी
में मिलाने का प्रस्ताव
एफएसएसएआई ने इसी साल
जनवरी में दिया था। सेंटर फॉर
साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)
की रिपोर्ट के बाद एफएसएसआई ने
ब्रेड, बन, पिज्जा बेस जैसे उत्पादों में
पोटेशियम ब्रोमेट के इस्तेमाल पर
रोक लगाई थी। इस खुलासे के बाद
एफएसएसएआई से जब सवाल
किए गए तो कोई जवाब नहीं मिल
पाया।
2011 में तय किए
थे मानक
भारत में बोतलबंद मिनरल वाटर के
मौजूदा मानक 2011 में तय किए
गए थे। इसके तहत पानी में
पोटेशियम ब्रोमेट मिलाने की
सख्त मनाही है। लेकिन जनवरी,
2016 में नई अधिसूचना आई
जिसमें प्राधिकरण ने 1 लीटर
बोतलबंद पानी में अधिकतम 10 माइक्रोग्राम की मात्रा स्वीकृत कर दी !
उसके शोधन में ओजोन का
इस्तेमाल होता है। डब्ल्यूएचओ
इसे पानी को दूषित करने वाला
मानता है ,और कहता है - कि यह
पानी में मौजूद नहीं होना चाहिए।
यह तय मानक उचित नहीं।
कुछ देशों में बेहद सीमित मात्रा में
पानी में ब्रोमेट की इजाजत दी
जाती है ,लेकिन यह मानक
विभिन्न देशों में अलग-अलग हैं।
ब्रिटेन में प्रति लीटर 3 माइक्रोग्राम
ब्रोमेट की इजाजत है, वहीं यूरोपीय
संघ में प्रति लीटर 10 माइक्रोग्राम को उचित माना गया है
हालांकि यूरोपीय संघ ने यह मानक
वर्ष 1998 में तय किए थे। वहीं
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, भारत
में पेयजल में ब्रोमेट को लेकर
अभी तक बेहतरीन मानकों का
पालन किया गया है।
नवीन तकनीकों ने
बनाया बेहतर
भारत की प्रयोगशालाओं में
पानी में ब्रोमेट को मापने की
तकनीक पहले काफी पुरानी थी।
इस तकनीक से एक लीटर पानी
में 10 माइक्रोग्राम ब्रोमेट
होने पर ही पता चलता था।
लेकिन अब नवीनतम तकनीकों के
माध्यम से एक लीटर पानी में
0.02 माइक्रोग्राम ब्रोमेट का पता |
भी चल जाता है। जिससे कि वास्तविक तौर पर पानी की शुद्धता का पता चलता है
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